कॉक्लिअर इम्प्लांट क्या है ? (Cohclear Implant Sugery in Hindi)


कॉकलियर इंप्लांट (Cochlear Implant)
कॉकलियर इंप्लांट  (Cochlear Implant) ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसे सर्जरी के द्वारा कान के अंदरूनी हिस्से में लगाया जाता है और जो कान के बाहर लगे उपकरण से चालित होता है। इसका उपयोग  आवाज़ को सुनने की असमर्थता को ठीक करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया को कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी  कहा जाता है।
इसके साथ में इसका उपयोग उस स्थिति में किया जाता है, जब आवाज को बेहतर तरीके से सुनने वाले सारे इलाज असफल साबित हो जाते हैं। कॉकलियर इंप्लाट कोई सुनने की मशीन नहीं है, जो आवाज़ को तेज सुनने में सहायता करे, बल्कि यह सीधे तौर पर व्यक्ति के शरीर में मौजूद सुनने वाली तंत्रिकाओं पर प्रभाव डालता है, जिससे सुनने की परेशानी का हल हो सके।
कॉकलियर इंप्लांट का उपयोग कॉक्लिया के खराब होने के कारण बेहरेपन का इलाज करने के लिए किया जाता है। कॉक्लिया कान के अंदरूनी हिस्से को कहा जाता है। इसका आकार स्नैल (घोंघा) के शैल(कवच) की तरह होता है।
कॉक्लिया में बालों के आकार के हजारों कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें स्टीरियोसिलिया कहा जाता है। स्टीरियोसिलिया ध्वनि तंरगों को प्राप्त करता हैं और उन्हें इलेक्ट्रिकल सिंग्नल में बदलता है। इन इलेक्ट्रिकल सिंग्नलों को बाद में श्रव्य तंत्रिकाओं (ऑडिटरी नर्व) द्वारा प्राप्त किया जाता है, जो संदेश को दिमाग तक पहुंचाती है, जो उस ध्वनि को समझता है।
कॉकलियर इंप्लांट उपकरण में कुछ भाग होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
  • माइक्रोफोन: यह कॉकलियर उपकरण  का बाहरी हिस्सा होता है। यह बाहर की ध्वनि को ग्रहण करता है और उसे स्पीच प्रोसेसर को भेजता है।
  • स्पीच प्रोसेसर: यह माइक्रोफोन से ध्वनि को प्राप्त करता है और उसे डिजिटल सिग्नल में बदल देता है। इसके बाद वह इन सिंग्नल को ट्रांसमिटर में भेजता है।
  • ट्रांसमीटर: कॉकलियर उपकरण सिंग्नल को रिसीवर के पास भेजता है, जिसे त्वचा के भीतर लगाया जाता है।
  • रिसीवर: कॉकलियर उपकरण  इस चीज को सुनिश्चित करता है कि इलेट्रोडस से कितना करंट पास होना चाहिए।  करंट की मात्रा ध्वनि की आवाज पर निर्भर करती है।
  • इलेट्रोडस: यह रिसीवर से सिंग्नल को प्राप्त करता है और कॉक्लिया में मौजूद श्रव्य तंत्रिकाओं (ऑडिटरी नर्व) को ट्रीगर करता है, जो सिंग्नल को दिमाग तक पहुंचाता है, जहां से ध्वनि को समझता है।
कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के कौन-कौन से लक्षण होते हैं?(Indications of Cochlear Implant-in Hindi)
हालांकि, कॉकलियर इंप्लांट को बच्चों और बड़ों दोनों में किया जा सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह सभी कम सुनने वाले लोगों के लिए अनुकूल साबित हो।
बच्चों और बड़ों के लिए कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी का चयन विभिन्न तरीके से किया जाता है, लेकिन वह सामान्य सिद्धांत पर ही निर्भर करता है, जिसके महत्वपूर्ण बिंदू निम्नलिखित हैं-
  • जो व्यक्ति बेहरा हो या फिर उसे काफी कम सुनाई देता हो और इसके साथ में उसे कान की मशीन से फायदा न पहुंचा हो। अगर कोई व्यक्ति कान की मशीन का उपयोग करके बेहतर सुनने लगता है तो उसे कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी कराने की सलाह नहीं दी जाती।
  • कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  को वह व्यक्ति करा सकता है, जो या तो जन्म से बेहरा हो या वह बोलने की स्थिति के दौरान बेहरा हो गया हो और इसके साथ में उसकी ऐसी कोई मेडिकल स्थिति न हो, जो इस सर्जरी को उसके लिए खतरनाक बना दे।
अगर कोई व्यक्ति बेहरेपन  की समस्या का जूझ रहा है तो इन दिनों डॉक्टर उसे कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी कराने की सलाह दे रहे हैं क्योंकि बेहरेपन  उसकी आने वाली पीढ़ी को भी हो सकती है।
कैसे की जाती है  कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी? (Procedure of Cochlear Implant Surgery-Hindi)
ऊपर दिए गए मूल्यकांन में अगर कोई व्यक्ति खरा उतरता है तो उसके बाद  कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  को किया जाता है।
कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी में निम्नलिखित बिंदू शामिल हैं-
  1. स्टेप 1: कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के शुरूआती टेस्टों को ऑडियोलॉजिस्ट के द्वारा किया जाता है जबकि मरीज़ को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया जाता है ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि इलेक्ट्रोड अधिक तरह से काम कर रहे हैं।
  2. स्टेप 2: कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  में लगभग 60-75 मिनट का समय लगता है और इसमें मरीज़ को एनेस्थीसिया दिया जाता है ताकि उसे किसी तरह का दर्द महसूस न हो। इसके बाद उसके कान के पीछे के बालों को शेव कर दिया जाता है, ताकि इस प्रक्रिया को आसानी से किया जा सके।
  3. स्टेप 3: सर्जन मरीज़ के कान के पीछे कट लगा देता है और मैस्टॉइड बोन (खोपड़ी की अस्थाई हड्डी का भाग) के माध्यम से छेद किया जाता है। इस छेद के माध्यम से इलेक्ट्रॉइड को कॉक्लिया में डाला जाता है।
  4. स्टेप 4: कान के पिछले हिस्से में पॉकेट को बनाया जाता है, जिसमें रिसीवर को रखा जाता है। यह पॉकेट रिसीवर को सुरक्षित रखते में सहायता करता है। फिर उस छेद को गलने योग्य टांकों से बंद कर दिया जाता है।
  5. स्टेप 5: इस सर्जरी के लगभग एक महीने के बाद, बाहरी उपकरणों जैसे माइक्रोफोन, स्पीच प्रोसेसर और ट्रांसमीटर को कान के बाहर लगा दिया जाता है।
  6. स्टेप 6: विशेषज्ञों की टीम मरीज़ को यह बात बताती है कि उसे इस इंप्लांट के अपना किस तरह से ध्यान रखना है और उसके माध्यम से ध्वनि को किस तरह से सुनना है।
कभी-कभी मरीज को यह सारे बाते समझने और उसका कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  करने में अधिक समय लग सकता है।
कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के बाद कौन-कौन से कार्य किए जाते हैं? (Post Procedure of Cochlear Implant Surgery-Hindi)
कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के बाद मरीज को कुछ सावाधानियां बरतनी चाहिए, जो पोस्ट प्रक्रिया के अंतर्गत आती हैं और ये कुछ इस प्रकार हैं-
उसे नहाने या स्विमिंग करने से पहले कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के बाहरी हिस्से को निकाल देना चाहिए। एमआरआई कराते समय भी विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए और उसे अलग तरह से करना चाहिए।  जिस व्यक्ति ने कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी कराए है, उसे किसी भी तरह के खेल में भाग नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे उसे कोई चोट लग सकती है। इंप्लांट उपकरण खराब भी हो सकता है।
उस व्यक्ति को समय-समय पर इंप्लांट की बैटरी को रिचार्ज या खराब होने पर, उसे बदलवाने की आवश्यकता होती है।
कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के कौन- कौन से जोखिम होते है? (Risks of Cochlear Implant Surgery-Hindi)
हालांकि, कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी को एक छोटे से कट के माध्यम से किया जाता है जो काफी सुरक्षित होती है परंतु प्रत्येक सर्जरी के अपने जोखिम या खतरे होते हैं, उसी प्रकार से कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के भी कुछ जोखिम हैं, जो इस प्रकार हैं:
कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  के बाद जख्मों को भरने में परेशानी हो सकती है। शरीर के उस हिस्से में संक्रमण हो सकता है, जहां पर कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  को किया गया है, लेकिन मरीज़ को ऑपरेशन के दौरान एंटिबॉयोटिक इंजेक्शन देकर संक्रमण के खतरे को कम किया जाता है।
इस कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी  के बाद चेहरे की तंत्रिका के खराब होने का भी खतरा होता है क्योंकि इसे कान के माध्यम से किया जाता है। ऐसा फेशियल पल्स के कारण हो सकता है, जहां पर चेहरे की उस तरफ की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है, जहां पर इस सर्जरी को किया गया था।
कभी-कभी फैशियल पल्स के उस हिस्से में परेशानी हो सकती है, जहां पर जीभ से दिमाग के बीच स्वाद एहसास होता है, जिससे किसी व्यक्ति को चीज के स्वाद का पता चलता है। फैशियल नर्व के खतरे को कम करने के लिए, ऑपरेशन के दौरान चेहरे में छोटी सुइयों को ध्यान से लगाया जाता है।
त्वचा के उस हिस्से पर घाव हो सकता है, जहां पर इंप्लांट किया जाता है। कभी-कभी केरेब्रस्पिनल  फ्लूइड (सीएसएफ) लीक हो सकता है। कभी-कभी यह खुद ही ठीक हो सकता है या इसे ठीक करवाना भी पड़ सकता है। अगर यह ठीक नहीं होता है तो फिर कान के भीतर एनेस्थीसिया दिया जाता है और वहां पर पैक लगाया जाता है। इसके साथ में ऐसा भी हो सकता है कि यह उपकरण काम न करे, लेकिन ऐसा काफी कम होता है। ऐसी स्थिति में आपको सर्जन से संपर्क करना चाहिए और वह उसे ठीक करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगें।
ज्यादातर लोग इस बात से अनजान होते है की बहरेपन का भी इलाज अब संभव है इसलिए वो अक्सर इस परेशानी को नजरअंदाज कर देते है और समय पर अपना या अपने परिवारजनों का इलाज नहीं कराते।
यदि आप या आपके जान पहचान में कोई ऐसी परेशानी से जूझ रहे है तो किसी अस्पताल या विशेष्ज्ञ से राय ले।